महाकुंभ 2025 का आयोजन प्रयागराज में हो रहा है, और हर बार की तरह इस बार भी यह आयोजन साधु-संतों और उनके अनोखे रूप-व्यवहार के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बार सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोर रहे हैं कांटे वाले बाबा, जिनकी तपस्या और उनसे जुड़ी घटनाएं लोगों को आकर्षित कर रही हैं।
कौन हैं कांटे वाले बाबा?
कांटे वाले बाबा, जिनका असली नाम रमेश कुमार मांझी है, पिछले 50 वर्षों से कांटों की सेज पर लेटकर तपस्या कर रहे हैं। उनका मानना है कि कांटों की यह साधना उन्हें दिव्यता और आत्मिक शांति का अनुभव कराती है। बाबा की यह अनोखी तपस्या महाकुंभ में श्रद्धालुओं और पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
सोशल मीडिया पर बाबा की वायरल घटनाएं
महाकुंभ में कांटे वाले बाबा के साथ हुई दो घटनाओं ने उन्हें सोशल मीडिया पर और भी चर्चा का विषय बना दिया है:
रिपोर्टर को थप्पड़ मारने की घटना:
एक रिपोर्टर ने बाबा से पूछा कि क्या उनके कांटे असली हैं। इस सवाल से बाबा नाराज़ हो गए और उन्होंने रिपोर्टर को थप्पड़ मार दिया। यह घटना कैमरे में कैद हो गई और सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गई।
युवती के दुर्व्यवहार से रो पड़े बाबा:
एक अन्य घटना में, एक युवती ने बाबा के साथ दुर्व्यवहार किया। इस घटना ने बाबा को इतना आहत किया कि वे भावुक होकर रो पड़े। यह घटना भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, और लोगों के बीच बाबा के प्रति सहानुभूति और युवती की आलोचना का दौर शुरू हो गया।
लोगों की प्रतिक्रियाएं
इन घटनाओं पर लोगों की प्रतिक्रियाएं मिली-जुली रही हैं।
कुछ लोगों ने बाबा के साथ हुए व्यवहार की निंदा की है और उनके प्रति सहानुभूति जताई है।
वहीं, कुछ लोग मानते हैं कि बाबा का गुस्सा और थप्पड़ मारना अनुचित था।
बाबा की साधना: धर्म और विज्ञान के बीच बहस
कांटे वाले बाबा की साधना धर्म और विज्ञान के बीच एक रोचक चर्चा का विषय बनी हुई है। श्रद्धालु इसे भक्ति और तपस्या का प्रतीक मानते हैं, जबकि वैज्ञानिक इसे शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों के संदर्भ में देख रहे हैं।
महाकुंभ का आकर्षण
महाकुंभ हमेशा से अपने अद्भुत साधु-संतों और उनकी अनोखी साधनाओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। कांटे वाले बाबा इस बार महाकुंभ का सबसे बड़ा आकर्षण बने हुए हैं। उनके दर्शन करने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं।
निष्कर्ष
कांटे वाले बाबा की साधना और उनसे जुड़ी घटनाएं महाकुंभ 2025 को और भी यादगार बना रही हैं। यह आयोजन न केवल आध्यात्मिकता का प्रतीक है, बल्कि यह हमें भक्ति, श्रद्धा और मानव व्यवहार की गहराईयों को समझने का अवसर भी देता है।
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